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UNESCO-IOC द्वारा सामुदायिक सहनसक्षमता बढ़ाने के मकस़द से शुरू किया गया सुनामी तैयारी कार्यक्रम, एक अनूठी पहल है.

भारत: किसी सुनामी से निपटने के लिए पूरी तैयारी: आपदा से मिले अहम सबक़

© UNESCO
UNESCO-IOC द्वारा सामुदायिक सहनसक्षमता बढ़ाने के मकस़द से शुरू किया गया सुनामी तैयारी कार्यक्रम, एक अनूठी पहल है.

भारत: किसी सुनामी से निपटने के लिए पूरी तैयारी: आपदा से मिले अहम सबक़

जलवायु और पर्यावरण

वर्ष 2004 में हिन्द महासागर में आई सुनामी से, हिन्द एवं प्रशान्त महासागर के 14 देश प्रभावित हुए थे. इसमें कुल 2 लाख 30 हज़ार से अधिक लोगों की मौत हुई थी और विनाश के ऐसे दर्दनाक निशान पीछे छूटे कि आज बीस साल बाद भी इस नुक़सान का दर्द हरा है. लेकिन इस दर्द व पीड़ा के बीच एक नई कहानी ने जन्म लिया - प्रगति और सहनसक्षमता की कहानी!

26 दिसम्बर 2004 की सुबह, केरल के मछुआरे श्रीकुमार, मछली पकड़ने के लिए समुद्र में गए थे. लेकिन काम करते वक़्त अचानक उन्हें echo sounder से आने वाले संकेतों में अजीब विसंगतियाँ नज़र आईं.

श्रीकुमार उस दिन को याद करते हुए बताते हैं, "समुद्री लहरें असामान्य रूप से तेज़ हो गई थीं, जिससे मुझे मछली पकड़ने का जाल बाहर निकालने में बहुत मुश्किल हो रही थी. मुझे लग गया था कि कुछ तो गड़बड़ है. मैंने अपने एक मुहाने के पास नाव का लंगर डाला, और किसी तरह अशान्त लहरों से संघर्ष करते हुए किनारे तक पहुँचा."

"मेरे वहाँ पहुँचने तक तबाही शुरू चुकी थी. घर ख़ाली थे, लोग वहाँ से जा चुके थे, और बहुत से लोग, इस उथल-पुथल से अचम्भित, हालात समझने की कोशिश कर रहे थे."

2004 में हिन्द महासागर में आई सुनामी ने, भारतीय और प्रशान्त महासागरों के 14 देशों में अफ़रा-तफ़री मचा दी थी, जिससे दुनिया भर में 2 लाख 30 हज़ार से अधिक लोगों की मौत हुई थी और विशाल स्तर पर तबाही हुई थी. उस आपदा को 20 साल बीत चुके हैं और अब इस इलाक़े में प्रगति व तैयारी का एक अलग मंज़र नज़र आता है.  

2004 की सुनामी के कहर से बुरी तरह प्रभावित भारत ने वैज्ञानिक प्रगति, पूर्व चेतावनी प्रणाली और समुदाय-नेतृत्व वाली पहलों के ज़रिए, अपनी आपदा तैयारियों को काफ़ी मज़बूत किया है.
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तैयारी का नवीन युग

2004 की सुनामी के क़हर से बुरी तरह प्रभावित भारत ने वैज्ञानिक प्रगति, पूर्व चेतावनी प्रणाली और समुदाय-नेतृत्व वाले कार्यक्रमों और योजनाओं के ज़रिए, अपनी आपदा तैयारियों को काफ़ी मज़बूत किया है.

इस समय भारत की पूर्व चेतावनी प्रणाली दुनिया की सर्वाधिक विश्वसनीय प्रणालियों में से एक है, जो न केवल देश के भीतर, बल्कि श्रीलंका, बांग्लादेश, म्याँमार और थाईलैंड समेत, एशिया-प्रशान्त क्षेत्र के कई देशों को सहायता प्रदान करती है.

इन प्रगतियों के साथ-साथ UNESCO के अन्तर-सरकारी महासागरीय आयोग (IOC) जैसी अन्तरराष्ट्रीय भागेदारी से, वैश्विक स्तर पर उपलब्ध ज्ञान को साझा करने की सुविधा मिली है, जिससे देश को समय-पूर्व कार्रवाई करने तथा सुनामी के ख़तरे की भविष्यवाणी व प्रबन्धन की क्षमता बढ़ाने में मदद मिली है.

IOC-यूनेस्को सचिवालय के प्रमुख, डॉक्टर टी श्रीनिवास कुमार ने बताते हैं, “यूनेस्को-IOC के ज़रिए वैश्विक भागेदारी की रूपरेखा प्रदान करना, तैयारियों के लिए आवश्यक है. ये रूपरेखाएँ, वैश्विक 'प्रणालियों की प्रणाली' के रूप में कार्य करती हैं.”

यूनेस्को ने 2030 तक विश्वभर के 100% तटीय समुदायों को "सूनामी तैयार" बनाने के लिए एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किया है.
Ocean Image Bank/David Gross

सुनामी तैयारी कार्यक्रम: समुदाय पर है ध्यान

इस परिवर्तन के केन्द्र में है - सुनामी तैयारी कार्यक्रम, जो UNESCO-IOC द्वारा सामुदायिक सहनसक्षमता बढ़ाने के मकस़द से शुरू की गई एक अनूठी पहल है. ओडिशा के केन्द्रपाड़ा ज़िले में, कैथा व राजनगर जैसे गाँव, सुनामी और चक्रवात की तैयारी के आदर्श बन गए हैं. भारत के 28 समुदायों को ‘सुनामी सहनसक्षम’ घोषित किया जा चुका है और कई अन्य गाँव ये उपलब्धि हासिल करने के बहुत क़रीब हैं.

कैथा गाँव की सामुदायिक स्वयंसेविका नर्मदा पात्रा कहती हैं, “पहले तो मैं ख़ुद ही, सुनामी का मतलब ठीक तरह से नहीं समझती थी. लेकिन अब, मैं हर महीने बच्चों को प्रशिक्षित करती हूँ, उन्हें सिखाती हूँ कि ऐसी आपदा की स्थिति में कहाँ जाना है, क्या सुरक्षा करनी है, और आपातकाल के दौरान वृद्धों की देखभाल कैसे करनी है. आज, हमारे गाँव के हर बच्चे को, निकासी मार्ग व सुरक्षित आश्रयों की जानकारी है.”

यूनेस्को और INCOIS ने, आपदा की तैयारी में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका पहचानते हुए, भारत में पत्रकारों के लिए प्रारम्भिक चेतावनी केन्द्र और ‘सुनामी तैयार’ समुदाय का दौरा आयोजित किया.

यहाँ पत्रकारों को वास्तविक समय में सुनामी निगरानी गतिविधियाँ देखने व त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली के बारे में जानकारी लेने का अवसर प्राप्त हुआ. साथ ही इन चेतावनियों पर, ‘सुनामी के लिए तैयार’ समुदाय की प्रतिक्रिया का प्रदर्शन भी किया गया. 

अतीत से सीख, भविष्य की तैयारी

2004 की सुनामी से आपदाओं के व्यापक प्रभावों के बारे में कठिन सबक़ मिले. बचाव कार्रवाई के दौरान समझ में आया कि जानो-माल की तात्कालिक हानि के अलावा भी बहुत नुक़सान हुआ है. 

स्कूल और बुनियादी ढाँचे नष्ट हो गए, स्वच्छ पानी की क़िल्लत हो गई और विस्थापित परिवारों को खाद्यान्न की कमी व स्वास्थ्य संकट जैसी गम्भीर समस्याओं का सामना करना पड़ा.

इन चुनौतियों से, समग्र आपदा प्रबन्धन का महत्व उजागर हुआ, जिससे न केवल तात्कालिक ख़तरों, बल्कि दीर्घकालिक सुधार पर भी ध्यान दिया जा सका. भविष्य में भारत, बहुकोणीय ख़तरों की प्रारम्भिक चेतावनी प्रणाली विकसित करने पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है.

यह प्रगति, संयुक्त राष्ट्र महासागर दशक सुनामी कार्यक्रम के साथ मेल खाती है, जिसका मक़सद वैश्विक स्तर पर चेतावनी प्रणाली तथा सामुदायिक तत्परता में सुधार के लिए अन्तरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है.

इस पहल के तहत, निगरानी सम्बन्धी बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने, जवाबी कार्रवाई में सुधार और तैयारी रणनीतियों में स्थानीय ज्ञान को एकीकृत करने जैसे उपाय शामिल हैं.

त्रासदी के दो दशक बाद, हिन्द महासागर में आई सुनामी, प्रकृति की ताक़त व मानवता की कमज़ोरी का एक कठोर उदाहरण पेश करती है. लेकिन साथ ही, इससे सामूहिक कार्रवाई के ज़रिए हासिल प्रगति भी उजागर होती है.

यूनेस्को के ‘सुनामी तैयार कार्यक्रम’ का उद्देश्य, जागरूकता और तैयारियों का निर्माण करना, हितधारकों के बीच सहयोग को प्रोत्साहन देना व प्रमुख सुरक्षा संकेतकों को पूरा करने वाले समुदायों की पहचान स्थापित करना है.

कमज़ोर समुदायों को प्रशिक्षित करने की कार्यक्रम की प्रतिबद्धता से, 2030 तक सर्वजन के लिए सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी.

भविष्य में भारत, बहु-ख़तरों की प्रारम्भिक चेतावनी प्रणाली विकसित करने और ग़ैर-भूकम्पीय सुनामी से निपटने पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है.
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