संभल हिंसा के बाद अब किस हाल में हैं स्थानीय हिंदू-मुसलमान?

शानू और ओमकार की तस्वीर
इमेज कैप्शन, शानू (बाएं) और ओमकार (दाएं) पिछले 16 साल से एक-दूसरे को जानते हैं
  • Author, अंशुल सिंह
  • पदनाम, बीबीसी संवाददाता, यूपी के संभल से

यूपी के संभल की शाही जामा मस्जिद में 29 नवंबर को जब जुमे की नमाज़ पढ़ी जा रही थी तो आस-पास के इलाक़े में सन्नाटा पसरा था. बाज़ार में कुछ ही दुकानें खुली थीं.

24 नवंबर को मस्जिद में दूसरे सर्वे के दौरान इलाक़े में हिंसा हुई थी और उसके बाद यह पहला जुमा था.

इस दौरान हमारी मुलाक़ात ओमकार और शानू से हुई.

ओमकार यहां एक दुकान में पिछले 24 साल से काम करते हैं और शानू पेशे से ड्राइवर हैं.

दोनों 16 साल से एक-दूसरे को जानते हैं और समय के साथ दोस्ती गहरी होती चली गई.

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जिस रविवार को हिंसा हुई, उसे शानू संभल के लिए ‘काला दिन’ मानते हैं.

शानू कहते हैं, “ये संभल के लिए काला दिन था. संभल में संडे का दिन ब्लैक डे माना जाएगा. हमारी इतनी उम्र हो गई हमने तो संभल में पहले ऐसा कभी नहीं देखा. ओमकार, महिपाल और एक पंडित जी थे, हम तो ऐसे ही रहते थे नॉर्मल से. भाई-भाई की तरह रहते थे.”

दूसरे सर्वे के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प में पांच लोगों की मौत हो गई थी. हालांकि पुलिस ने चार मौतों की ही पुष्टि की.

रविवार की हिंसा को याद करते हुए ओमकार बताते हैं, “हमारे मार्केट के सब लोग अपने-अपने घरों में क़ैद थे. मैं बीच-बीच में ऊपर से झांककर बाहर देख लेता था क्योंकि मैं एक हिन्दू हूं. मुस्लिम लोग तो बिल्कुल भी बाहर नहीं निकल रहे थे ताकि क़ैमरे में ना आ जाएं. मुस्लिम ख़ौफ़ में थे. उन्हें डर था कि अगर वो वीडियो में आ जाएंगे तो पुलिस उनकी धर-पकड़ कर सकती है.”

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घरों में लगे हुए ताले
इमेज कैप्शन, हिंसा प्रभावित गली के कई घरों में ताले लगे हुए हैं और स्थानीय लोग कैमरे पर बातचीत करने से बच रहे हैं.

मुस्लिम बहुल मोहल्ले में तनाव

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समाप्त

संभल की शाही जामा मस्जिद के ठीक पीछे मुस्लिम आबादी वाला कोट पश्चिमी मोहल्ला है. 24 नवंबर को को यहां पानी की टंकी वाली गली के मुहाने पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़प हुई थी.

लगभग एक हफ़्ता हो गया है और अब भी इस गली के कई घरों पर ताले लगे हुए हैं. लोग कैमरे पर बातचीत के लिए तैयार नहीं हैं. उन्हें डर है कि अगर उन्होंने मीडिया से बातचीत की तो उनके ख़िलाफ़ पुलिस एक्शन ले सकती है.

हालांकि पुलिस प्रशासन इस आरोप से इनकार कर रहा है.

बीबीसी ने इस बारे में संभल के पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार बिश्नोई से बातचीत की.

कृष्ण कुमार बिश्नोई कहते हैं, “पुलिस को कोई शौक नहीं है किसी व्यक्ति को परेशान करने का या किसी के परिवार को बर्बाद करने का. हम सिर्फ़ सबूतों के आधार पर कार्रवाई करते हैं.”

संभल के कुछ लोगों ने पहचान गुप्त रखे जाने की शर्त पर हमसे बातचीत की.

उन्होंने बताया, “घरों में जो ताले दिख रहे हैं वो लोग पुलिस की कार्रवाई के डर से अभी यहां से अपना घर छोड़कर जा चुके हैं. जब तक माहौल ठीक नहीं होता तब तक इनके लौटने के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं.”

लेकिन ये लोग अपना सब कुछ छोड़कर कहां गए?

स्थानी लोगों का कहना है, “कोई दिल्ली, कोई उत्तराखंड, कोई दूर किसी रिश्तेदार के यहां. जिसको जहां सुरक्षित जगह मिली वो वहां निकल गया.”

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शाही मस्जिद के पास बंद पड़ा बाज़ार
इमेज कैप्शन, स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि कम से कम एक महीने बाद ही बाज़ार में पहले जैसा माहौल हो पाएगा

हिन्दू बहुल के मोहल्ले में चहल-पहल

मुस्लिम बहुल मोहल्ले की तुलना में हिन्दू बहुल मोहल्ले की तस्वीर बिल्कुल अलग है.

मस्जिद के ठीक सामने कोट पूर्वी मोहल्ला है जहां हिन्दू आबादी रहती है.

मुस्लिम आबादी वाले मोहल्ले की तुलना में यहां लोगों की ज़िंदगी सामान्य नज़र आती है. लोगों की दुकानें खुली हैं और यहां घरों पर ताले लटके हुए नहीं दिखाई दे रहे हैं.

यहां लोग कैमरा देखकर डर नहीं रहे हैं और बातचीत करने के लिए भी तैयार हो जा रहे हैं. मोहल्ले के अधिकतर हिन्दू शाही मस्जिद को हरिहर मंदिर बता रहे हैं और इनमें 73 साल के प्रेमशंकर भी शामिल हैं.

बीबीसी से प्रेमशंकर कहते हैं, “हमने जबसे होश संभाला हमने तब से ही मस्जिद देखी है लेकिन पुरातत्व विभाग और मस्जिद की जो कहानी होगी वो तो इतिहास की किताबों में मिलेगी. यहां तो सब लोग इसे मंदिर ही बताते हैं. हरिहर मंदिर. किसी भी हिन्दू से पूछ लो.”

सुप्रीम कोर्ट के स्टे वाले आदेश पर वो कहते हैं कि हमें पूरा भरोसा है कि कोर्ट न्याय करेगा.

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हिन्दू मोहल्ले की तस्वीर
इमेज कैप्शन, मस्जिद के सामने अधिकतर हिंदू समुदाय के लोग रहते हैं जबकि इसकी पिछली दीवार के चारों तरफ़ मुसलमान आबादी है

कुछ लोग यह भी दावा कर रहे थे कि जिस दिन मुस्लिमों के मोहल्ले में हिंसा हो रही थी उस दिन हिन्दुओं के मोहल्ले में सब कुछ सामान्य था और इसके लिए वो बार-बार प्रशासन को धन्यवाद दे रहे थे.

इस हिंसा का हिन्दू-मुस्लिम के संबंधों पर कितना असर पड़ा है?

अनिल कोट पूर्वी मोहल्ले में एक मिठाई की दुकान में बतौर हलवाई काम करते हैं.

अनिल इस सवाल के जवाब में कहते हैं, “वो उधर (मुस्लिम) के एरिया वाला कोई भी इधर (हिन्दू) के एरिया में नहीं आ रहा है. भूले भटके आ जाएं तो बात अलग है. पहले हम वहां जाते थे लेकिन अब माहौल को देखकर तनाव आ गया है और बात करने का तरीका भी बदल गया है.”

वहीं संभल एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई का कहना है कि बिना किसी तनाव के दोनों समुदाय शांतिपूर्ण तरीके से रह रहे हैं.

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पत्रकार राशिद मिर्ज़ा
इमेज कैप्शन, पत्रकार राशिद मिर्ज़ा

कहां हुई चूक?

मस्जिद के ठीक पास वाले बाज़ार में अरशद अलीम ख़ान प्लाईवुड और हार्डवेयर की दुकान चलाते हैं. हिंसा के बाद दुकान खुली है लेकिन न तो कारीग़र आ रहे हैं और न ही ग्राहक.

अरशद बताते हैं कि प्रशासन लोगों से दुकान खुलवाने की कोशिश कर रहा है लेकिन ग्राहक नहीं आ रहे हैं.

वो कहते हैं, “लोगों के दिल में डर है क्योंकि ऐसा माहौल संभल में कभी हुआ नहीं. डर ग्राहक के अंदर भी है. बाहर का ग्राहक तो बिल्कुल भी नहीं आ रहा है क्योंकि सब डरे हुए हैं.’’

यहीं पर हाजी खुर्शीद रंगाई-पुताई का सामान बेचते हैं.

हाजी खुर्शी कहते हैं, “कारोबारी हालात बहुत ख़राब हैं. दो दिन से कोई ग्राहक नहीं आ रहा है. अभी कम से कम महीना बीस दिन का वक़्त लगेगा तब सही होगा मामला.”

आख़िर हालात इतने बुरे कैसे हो गए?

राशिद मिर्ज़ा पिछले 25 साल से संभल में रहकर पत्रकारिता कर रहे हैं. उनका मानना है कि सर्वे के मामले में जल्दबाज़ी करना हिंसा का एक बड़ा कारण है.

राशिद मिर्ज़ा कहते हैं, “कोर्ट ने सीधे तौर पर एक सप्ताह का समय दिया था, फिर भी सर्वे में जल्दबाज़ी की गई. जल्दबाज़ी न करके एक-दो दिन उलेमाओं से स्पीच दिलवाई जा सकती थी. लोगों को संदेश भिजवाए जाते, अपीलें कराई जातीं. सभी पक्षों जैसे- हिन्दू, मुस्लिम को बुलाकर अमन कमेटी की बैठक करवाई जाती तो काफ़ी हद तक ये स्थिति बिगड़ने से रोकी जा सकती थी.”

हिंसा के एक हफ़्ते बाद प्रशासन की तरफ़ से इलाक़े में शांति की बात की जा रही है.

एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई कहते हैं, “उस दिन की घटना की वजह से स्कूल और बाज़ार बंद हो गए थे. अब उनको वापस खोला जा रहा है. इंटरनेट खुल गया है. हमने 300 से ज़्यादा लोगों की सबूतों के आधार पर पहचान की है और उन लोगों की धर-पकड़ की जाएगी.”

अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया

बाहरी लोगों की एंट्री बैन

तनाव के बीच संभल ज़िला प्रशासन ने दस दिसंबर तक बाहरी लोगों के प्रवेश पर बैन लगा दिया है. प्रशासन के मुताबिक़, जिले में बेहतर क़ानून-व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए ये कदम उठाया गया है.

ज़िला प्रशासन ने इसके लिए एक आदेश जारी किया है जिसमें लिखा है, “कोई भी बाहरी व्यक्ति, अन्य सामाजिक संगठन अथवा जनप्रतिनिधि जनपद संभल की सीमा में 10 दिसंबर 2024 तक समक्ष अधिकारी की अनुमति के बिना प्रवेश नहीं करेगा.”

यह फ़ैसला ऐसे समय लिया गया है जब विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के प्रतिनिधि संभल जाने वाले थे.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़- संभल जा रहे पार्टी नेताओं के दल का नेतृत्व कर रहे विपक्ष के नेता माता प्रसाद पांडे ने लखनऊ में अपने घर के बाहर पत्रकारों को बताया कि गृह सचिव संजय प्रसाद ने उन्हें फोन कर संभल न जाने को कहा था.

संभल के सांसद जिया उर्र रहमान बर्क ने भी दावा किया कि उन्हें भी संभल जाने से रोक दिया गया.

शाही जामा मस्जिद के रास्ते पर लगी बैरिकेडिंग की तस्वीर
इमेज कैप्शन, शाही जामा मस्जिद के रास्ते पर लगी बैरिकेडिंग

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे बीजेपी सरकार की नाक़ामी बताया है.

अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा, “ऐसा प्रतिबंध अगर सरकार पहले ही उन पर लगा देती, जिन्होंने दंगा-फ़साद का सपना देखा और उन्मादी नारे लगवाए तो संभल में सौहार्द-शांति का वातावरण नहीं बिगड़ता.''

अखिलेश यादव के बयान पर बीजेपी नेता और यूपी के उप-मुख्यंत्री ब्रजेश पाठक ने प्रतिक्रिया दी.

उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी के लोग संभल को 'राजनीतिक पर्यटन' समझ रहे हैं.

ब्रजेश पाठक ने कहा, "समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को अपने गिरेबान में झांककर देखना चाहिए. संभल की जो घटना है ये समाजवादी पार्टी के संरक्षित अपराधियों की देन है."

संभल की शाही जामा मस्जिद
इमेज कैप्शन, संभल की शाही जामा मस्जिद

क्या है पूरा मामला?

संभल की ऐतिहासिक जामा मस्जिद भारतीय पुरातत्व सर्वे (एएसआई) के तहत एक संरक्षित स्मारक है.

संभल की शाही जामा मस्जिद को लेकर यह विवाद 19 नवंबर को तब शुरू हुआ था.

तब संभल से क़रीब 25 किलोमीटर दूर स्थित कैला देवी मंदिर के महंत ऋषिराज महाराज और उनके साथ मिलकर कुछ लोगों ने संभल की ज़िला अदालत एक याचिका में दाख़िल की. उनका दावा है कि मस्जिद असल में हरिहर मंदिर है.

बीबीसी से बातचीत में मस्जिद के प्राचीन मंदिर होने का दावा करते हुए महंत ऋषिराज गिरी कहते हैं, ''वो हरिहर मंदिर ही है, जो भी साक्ष्य हैं वो हमने कोर्ट को उपलब्ध करा दिए हैं”

अदालत ने 19 तारीख़ को ही मस्जिद परिसर के सर्वे का आदेश पारित कर दिया और उसी दिन अदालत के आदेश पर मस्जिद परिसर का पहला सर्वे भी हुआ. हालांकि इस दौरान कोई हिंसा नहीं हुई थी.

24 नवंबर को दूसरे सर्वे के दौरान भीड़ और पुलिस बल आमने-सामने आ गए थे और देखते ही देखते कई घंटों तक हिंसक झड़पें हुईं.

बीते शुक्रवार यानी 29 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केस की सुनवाई की और कहा कि निचली अदालत (सिविल कोर्ट ) तब तक कोई सुनवाई नहीं करेगी जब तक कि मस्जिद कमिटी की याचिका (अगर वो कोई याचिका दायर करती है) हाई कोर्ट में सूचीबद्ध न हो जाए.

इस बीच संभल के हिंसा प्रभावित इलाक़े में हालात धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं लेकिन सब कुछ पहले जैसा होने में अभी कुछ वक़्त और लगेगा.

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