बंगाल शिक्षक भर्ती पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला: ममता ने कहा किसी की नौकरी नहीं छिनने दूंगी, क्या है आगे की राह?
- शिक्षकों की मांगें
- सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ समीक्षा याचिका दायर की जाए
- जब तक इस पर सुनवाई पूरी न हो, किसी भी शिक्षक को नौकरी से नहीं निकाला जाए
- याचिका उस खंडपीठ के सामने न दायर की जाए जिसने फ़ैसला सुनाया है
- इस दौरान नए सिरे से कोई बहाली परीक्षा न हो
- Author, प्रभाकर मणि तिवारी
- पदनाम, कोलकाता से, बीबीसी हिंदी के लिए

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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पश्चिम बंगाल में स्कूल सेवा आयोग के ज़रिए हुई करीब 25,000 शिक्षकों और गैर-शिक्षकों की बहाली को रद्द कर दिया था. सोमवार को राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शिक्षकों को भरोसा दिलाया कि 'उनके जीते जी किसी भी योग्य उम्मीदवार की नौकरी नहीं जाएगी.'
उन्होंने कहा कि ज़रूरत पड़ने पर सरकार दो महीने के भीतर वैकल्पिक व्यवस्था करेगी. इसके अलावा मुख्यमंत्री ने नौकरी गंवाने वाले शिक्षकों से कहा कि वे स्वेच्छा से स्कूलों में पढ़ाना जारी रखें.
बीते गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने स्कूल सेवा आयोग की 2016 की शिक्षक और गैर-शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को रद्द करते हुए तीन महीने के भीतर नई भर्ती प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया.
इससे पहले अप्रैल 2023 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी यही फ़ैसला सुनाया था. उस फ़ैसले को सरकार और सेवा आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
अब सुप्रीम कोर्ट ने मामूली संशोधनों के साथ हाईकोर्ट के फ़ैसले को बरकरार रखते हुए राज्य सरकार को नई बहाली की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया है.

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'योग्य' और 'अयोग्य' के बीच भ्रम

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सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से प्रभावित हुए हज़ारों शिक्षकों ने अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए 'डिप्राइव्ड टीचर्स एसोसिएशन' नामक संगठन बनाया है. संगठन का दावा है कि उसके करीब 15 हज़ार सदस्य हैं.
कोर्ट के आदेश के बाद एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु से मुलाक़ात की इच्छा जताई थी, लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ख़ुद इस बैठक में शामिल होने की सहमति दी.
इसी आधार पर सोमवार को नेताजी इंडोर स्टेडियम में ममता बनर्जी के साथ शिक्षा मंत्री, मुख्य सचिव मनोज पंत और दूसरे वरिष्ठ अधिकारी सुबह से ही मौजूद थे.
बैठक से पहले कथित तौर पर 'योग्य' और 'अयोग्य' उम्मीदवारों के बीच तीखी झड़प हुई, जिससे इलाके में अफ़रा-तफ़री मच गई. हालात को देखते हुए ट्रैफ़िक रोकना पड़ा और पुलिस के साथ-साथ रैपिड एक्शन फ़ोर्स (रैफ) के जवानों की तैनाती करनी पड़ी.

शहीद मीनार से जुलूस की शक्ल में स्टेडियम पहुंचे उम्मीदवारों के हाथ में एक 'पास' था, जिस पर लिखा था, 'हम लोग योग्य हैं.' यह पास किसने जारी किया, यह स्पष्ट नहीं हो सका है.
उम्मीदवारों का दावा था कि यह 'पास' उन्हें राज्य सचिवालय से मिला है, हालांकि सरकार की ओर से इसकी पुष्टि नहीं हुई. मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारियों ने इसी पास को दिखा कर उम्मीदवारों को भीतर जाने की अनुमति दी.
ममता बनर्जी के मंच पर पहुंचने के बाद एसोसिएशन की ओर से उन्हें मांगें पढ़कर सुनाई गईं. इसमें कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ समीक्षा याचिका दायर की जाए और जब तक इस पर सुनवाई पूरी न हो, किसी भी शिक्षक को नौकरी से नहीं निकाला जाए.
साथ ही यह याचिका उसी खंडपीठ के सामने न दायर की जाए जिसने फ़ैसला सुनाया है. संगठन का यह भी कहना था कि इस बीच नए सिरे से कोई बहाली परीक्षा आयोजित न की जाए.
उनका दावा था कि सीबीआई और सुप्रीम कोर्ट के रिकॉर्ड में योग्य और अयोग्य उम्मीदवारों की सूची पहले से मौजूद है, और उसी के आधार पर समीक्षा याचिका दाखिल की जाए.
ममता का भरोसा - नौकरी नहीं छिनने दूंगी

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शिक्षकों की मांगें सुनने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने भाषण में कहा, "किसी भी योग्य उम्मीदवार की नौकरी नहीं जाएगी. सरकार पहले सुप्रीम कोर्ट से इस फ़ैसले की व्याख्या मांगेगी. उसका जवाब नकारात्मक होने की स्थिति में तय समय के भीतर योग्य उम्मीदवारों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जाएगी. ऐसे लोगों की सर्विस भी ब्रेक नहीं होगी."
उनके मुताबिक़, सरकार ने इसके आगे की रणनीति तय कर ली है, लेकिन उन्होंने इसके बारे में नहीं बताया.
उन्होंने आगे कहा, "मैं अपने जीते-जी किसी भी 'योग्य' उम्मीदवार की नौकरी नहीं छिनने दूंगी, चाहे इसका कुछ भी नतीजा हो. यह मेरे लिए एक चुनौती है. सरकार क़ानून के दायरे में ही रह कर यह काम करेगी. हो सकता है कि इन शिक्षकों का साथ देने के लिए मुझे जेल भी जाना पड़े. लेकिन मैं उसके लिए भी तैयार हूं."
ममता का कहना था, "मानवता के आधार पर सुप्रीम कोर्ट को 'योग्य' और 'अयोग्य' उम्मीदवारों की सूची सरकार को देनी चाहिए."
उन्होंने आगे कहा, "नए सिरे से भर्ती परीक्षा आयोजित करने से पहले हमें यह बात जाननी होगी कि स्कूल कैसे चलेंगे? बाकी कामकाज कैसे होगा? अगर आप नौकरी नहीं दे सकते तो मेरा अनुरोध है कि इसे छीनें भी मत."
मुख्यमंत्री ने शिक्षकों से कहा, "सरकार की ओर से आपको अब तक बर्ख़ास्तगी का नोटिस नहीं मिला है. आप स्कूलों में जाकर स्वेच्छा से काम जारी रखिए."

सीएम के बयान पर क्या बोले शिक्षक?

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मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बैठक के बाद नौकरी गंवाने वाले शिक्षकों के बीच मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली.
उनका कहना था कि अगर वे मुख्यमंत्री की बात मान कर स्कूल जाते भी हैं, तो यह साफ़ नहीं है कि उन्हें वेतन मिलेगा या नहीं.
साथ ही, यह व्यवस्था कितने दिन चलेगी, इस पर भी कुछ साफ़ नहीं है. एक बड़ा सवाल यह भी है कि 'योग्य' और 'अयोग्य' उम्मीदवारों की सूची आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट जारी करेगा या स्कूल सेवा आयोग?
अधिकतर शिक्षक काम पर लौटने के लिए तैयार नज़र आए.
नदिया ज़िले के पलासी से आए मोहम्मद मुर्शीद विश्वास का कहना था, "ज़ुबान का क्या भरोसा कल बदल भी सकती है लेकिन मैं कल से स्कूल जाऊंगा. आगे जो होगा देखा जाएगा."
दक्षिण 24-परगना ज़िले की निवासी अनुभा कहती हैं, "मैं स्कूल तो जाऊंगी. लेकिन बिना वेतन काम करने के लिए तैयार नहीं हूं. बर्ख़ास्तगी का नोटिस नहीं मिलने तक मेरी नौकरी बरकरार है."
नदिया ज़िले के ही मधुमंगल राय कहते हैं, "सरकार बस एक अधिसूचना जारी कर दे कि जिनके ख़िलाफ़ कोई आरोप नहीं है, उनकी नौकरी बहाल रहेगी. इससे समस्या ख़त्म हो जाएगी. "
उनका कहना है कि स्कूलों में सालाना परीक्षाएं चल रही हैं, इसलिए वे कल से ही ड्यूटी पर लौटेंगे.
कुछ अहम सवाल

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लेकिन ममता बनर्जी के इस आक्रामक तेवर की वजह क्या है?
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शिखा मुखर्जी ने बीबीसी को बताया, "ममता के सामने इसके अलावा कोई चारा नहीं था. उनकी छवि आम लोगों के साथ खड़े रहने की ही रही है. पहले भी कई मामलों में वो अक्सर अदालती फ़ैसलों के ख़िलाफ़ कड़ी टिप्पणी करती रही हैं."
वो कहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षकों को हटाने का तो फ़ैसला सुना दिया, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया कि नई बहाली तक स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई कैसे जारी रहेगी. इस समय 10वीं कक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं की जांच चल रही है और जल्दी ही 12वीं की परीक्षा होनी है. ऐसे में देरी से लाखों छात्रों का भविष्य संकट में पड़ सकता है.
शिखा मानती हैं कि ममता अपनी समीक्षा याचिका में सुप्रीम कोर्ट के सामने इन्हीं व्यावहारिक सवालों को उठाना चाहेंगी.

राजनीतिक विश्लेषक सब्यसाची मंडल भी शिखा मुखर्जी की बातों से सहमत हैं.
वह कहते हैं, "अचानक इतनी बड़ी तादाद में शिक्षकों को हटाने से पूरी व्यवस्था गड़बड़ा सकती है. कई स्कूलों में तो कोई घंटी बजाने वाला तक नहीं बचा है. ममता ने सुप्रीम कोर्ट पर सीधे टिप्पणी करने की बजाय विपक्षी दलों की आड़ में इस मुद्दे पर आक्रामक रुख अपनाया है. साथ ही, यह भी साफ़ है कि वह अपनी राजनीतिक जमीन बचाना चाहती हैं और नौकरी गंवाने वालों के साथ खड़ी दिखना चाहती हैं."
दूसरी ओर, विपक्ष इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री पर हमलावर है.
विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी का कहना था, "अगर मुख्यमंत्री के पास योग्य और अयोग्य उम्मीदवारों की सूची मौजूद है तो उसे लेकर सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जाती?"
सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम का कहना है, "मुख्यमंत्री सब कुछ जानते हुए अब 'साधु' बनने का प्रयास कर रही हैं."
विश्लेषकों का मानना है कि अभी कई अहम सवालों के जवाब आना बाकी हैं.
मसलन, योग्य और अयोग्य उम्मीदवारों की सूची कैसे तैयार होगी?
अगर योग्य उम्मीदवार वापस स्कूल लौटते हैं तो क्या उन्हें वेतन मिलेगा?
और अगर सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला बदलने से इनकार कर दिया, तो उनके लिए क्या वैकल्पिक इंतज़ाम किए जाएंगे?
इन्हीं सवालों के जवाब में इस जटिल समस्या का समाधान छिपा है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित
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