वक़्फ़ बिल पर क्यों है विवाद और मुस्लिम धर्म गुरुओं की क्या है आपत्ति

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- Author, सैयद मोज़िज़ इमाम
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, लखनऊ
इस्लाम में वक़्फ़ को बहुत पुण्य का कार्य माना गया है. वक़्फ़ यानी ईश्वर को दान कर दी गई चल या अचल संपत्ति, जिस पर दोबारा दावा नहीं किया जा सकता.
धर्मार्थ दान की इसी परंपरा पर केंद्र सरकार के संसद में पेश किए गए वक़्फ़ संशोधन बिल पर वक़्फ़ बोर्ड और विपक्षी दलों ने सवाल उठाए हैं.
विपक्ष का आरोप है कि सरकार इस बिल के बहाने वक़्फ़ की संपत्तियों पर कब्ज़ा करना चाहती है जबकि सरकार की दलील है कि ये वक़्फ़ की संपत्तियों के बेहतर इस्तेमाल के लिए है और ये महिलाओं और वंचित वर्ग के भले के लिए है.
नए वक़्फ़ विधेयक के भारी विरोध के बाद, इसे एक संयुक्त संसदीय कमिटी को भेज दिया गया, जिसके अध्यक्ष बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल हैं.
संयुक्त संसदीय कमिटी में अलग-अलग दलों के तकरीबन 31 सांसद हैं. इनमें लोकसभा और राज्यसभा के सांसद शामिल हैं.

विरोध

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हालांकि इस बिल का राजनैतिक विरोध लगभग सभी विपक्षी पार्टियां कर रही हैं लेकिन सरकार का समर्थन कर रहीं कुछ पार्टियों ने भी इस बिल को लेकर शंका जताई है.
उनकी नाराज़गी भी एक वजह बताई जा रही है, जिसके कारण सरकार को इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति में भेजना पड़ा.
कांग्रेस के नेता मनीष तिवारी ने कहा, “ये बिल संवैधानिक नहीं है. यही नहीं बल्कि सरकार को इस तरह का कोई बिल लाने का अधिकार भी नहीं है जो धार्मिक दान से संबधित हो और ये कोशिश संघीय व्यवस्था पर एक प्रहार है.”
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने संसद में कहा, “ये संविधान के ख़िलाफ़ है और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है.”
औवैसी भी संयुक्त संसदीय समिति में है जो इस बिल पर अपनी राय देगी .
सरकार की दलील

केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरन किरेन रिजिजू ने जब वक़्फ़ संशोधन बिल पेश किया था, तब इसकी ख़ूबियां गिनाई थीं.
सरकार का दावा है कि इस बिल के आने से वक़्फ़ संबंधित विवादों के निपटारे में आसानी होगी.
किरेन रिजिजू ने संसद में कहा था, “इस बिल के आने से किसी की भी धार्मिक आज़ादी में हस्तक्षेप नहीं होगा. यह बिल किसी का अधिकार लेने की बात नहीं करता है बल्कि इसे उन लोगों को अधिकार देने के लिए लाया जा रहा है, जिन्हें वक़्फ़ संबंधी अपने मामलों में अधिकार नहीं मिल पाता.''
किरेन रिजिजू ने आरोप लगाया कि विपक्ष मुसलमानों को गुमराह कर रहा है.
उन्होंने कहा, “विरोध कर रही पार्टियों के कई नेताओं ने ख़ुद कहा है कि माफ़ियाओं ने वक़्फ़ बोर्ड पर कब्ज़ा कर रखा है लेकिन अपनी पार्टी की वजह से वे चुप हैं. हमने इस पर पूरे देश में चर्चा की है.”
क्या है नया संशोधित वक़्फ़ बिल

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वक़्फ़ संशोधन पर नया बिल, 1995 के वक़्फ़ एक्ट को संशोधित करने के लिए लाया गया है.
इस बिल का नाम है यूनाइटेड वक़्फ़ मैनेजमेंट एम्पावरमेंट, एफ़िशिएंसी एंड डेवलपमेंट एक्ट-1995 यानी उम्मीद. आइये एक बार जान लेते हैं कि इस बिल में ऐसे क्या प्रावधान हैं, जिन पर आपत्ति की जा रही है.
इस बिल के प्रावधान के अनुसार, वही व्यक्ति दान कर सकता है जिसने लगातार पांच साल तक मुसलमान धर्म का पालन किया हो यानी मुस्लिम हो और दान की जा रही संपत्ति का मालिकाना हक़ रखता हो.
वक़्फ़ एक्ट में दो तरह की वक़्फ़ संपत्ति का ज़िक्र है. पहला वक़्फ़ अल्लाह के नाम पर होता है यानी, 'ऐसी मिल्कियत (संपत्ति) जिसे अल्लाह को समर्पित कर दिया गया है और जिसका कोई वारिसाना हक़ बाक़ी न बचा हो.'
दूसर वक़्फ़- 'वक़्फ़ अलल औलाद है यानी ऐसी वक़्फ़ संपत्ति जिसकी देख-रेख वारिस करेंगे.'
इस दूसरे प्रकार के वक़्फ़ में नए बिल में प्रावधान किया गया है कि उसमें महिलाओं के विरासत का अधिकार ख़त्म नहीं होना चाहिए.
ऐसी दान की हुई संपत्ति एक बार सरकार के खाते में आ गई तो ज़िले का कलेक्टर उसे विधवा महिलाओं या बिन मां-बाप के बच्चों के कल्याण में इस्तेमाल कर सकेगा.
संपत्ति विवाद की स्थिति में क्या होगा?

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अब ऐसी संपत्ति या ज़मीन पर अगर पहले से ही सरकार काबिज़ हो और उस पर वक़्फ़ बोर्ड ने भी वक़्फ़ संपत्ति होने का दावा कर रखा हो तो नए बिल के अनुसार वक़्फ़ का दावा तब डीएम के विवेक पर निर्भर करेगा.
नए बिल के अनुसार, कलेक्टर सरकार के कब्जे में मौजूद वक़्फ़ के दावे वाली ऐसी ज़मीन के बारे में अपनी रिपोर्ट सरकार को भेज सकते हैं.
कलेक्टर की रिपोर्ट के बाद अगर उस संपत्ति को सरकारी संपत्ति मान लिया गया तो राजस्व रिकॉर्ड में वह हमेशा के लिए सरकारी संपत्ति के रूप में दर्ज हो जाएगी.
प्रस्तावित बिल में वक़्फ़ बोर्ड के सर्वे का अधिकार ख़त्म कर दिया गया है. बिल के प्रावधान के अनुसार, अब वक़्फ़ बोर्ड सर्वे करके यह नहीं बता सकेगा कि कोई संपत्ति वक़्फ़ की है या नहीं.
मौजूदा एक्ट में वक़्फ़ बोर्ड के सर्वे कमिश्नर के पास वक़्फ़ के दावे वाली संपत्तियों के सर्वे का अधिकार है लेकिन प्रस्तावित बिल में संशोधन के बाद सर्वे कमिश्नर से यह अधिकार लेकर उसे ज़िले के कलेक्टर को दे दिया जाएगा.
और किन प्रावधानों पर हो रहा है विवाद?

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प्रस्तावित बिल के अन्य प्रावधान जिन पर आपत्तियां हैं, उनमें एक वक़्फ़ काउंसिल के स्वरूप का भी है.
सेन्ट्रल वक़्फ़ काउंसिल के सभी सदस्यों का मुसलमान होना अनिवार्य है लेकिन प्रस्तावित विधेयक में दो ग़ैर-मुस्लिम सदस्यों का प्रावधान भी जोड़ दिया गया है.
इसके साथ ही सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल के मुस्लिम सदस्यों में भी दो महिला सदस्यों का होना अनिवार्य कर दिया गया है.
विधेयक के अन्य प्रस्तावों में शिया और सुन्नी के अलावा बोहरा और आगाख़ानी के लिए अलग से बोर्ड बनाने की बात कही गई है. मौजूदा एक्ट के मुताबिक शिया वक़्फ़ बोर्ड तभी बनाया जा सकता है, जब वक़्फ़ की कुल संपत्ति में 15 फ़ीसदी संपत्ति एवं आमदनी की हिस्सेदारी शिया समुदाय के पास हो.
कैसे करते है वक़्फ़

वक़्फ़ की प्रक्रिया काफ़ी सरल है. जिस व्यक्ति के पास किसी ज़मीन का मालिकाना हक़ हो वो अपनी प्रॉपर्टी दान कर सकता है, जिसमें किसी मस्जिद ,इमाम-बारगाह या दरगाह के नाम ज़मीन दी जा सकती है.
ऐसे स्थलों के रखरखाव के लिए धर्मार्थ दान की ज़मीन का इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन नए बिल में बिना वक़्फ़ डीड के वक़्फ़ को अमल में नहीं लाया जा सकता है.
पुराने वक़्फ़ के लिए भी वक़्फ़ डीड की ज़रूरत बताई गई है, जिसको पोर्टल पर अपडेट करना है.
वक़्फ़ की ज़मीन बेची नहीं जा सकती है, सिर्फ़ किराये पर या लीज़ पर ही दी जा सकती है.
हालांकि सरकार के नए बिल में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति 12 साल से ज़्यादा काबिज़ रहे तो ज़मीन का मालिकाना हक़ उसको मिल जाएगा लेकिन इसे लेकर भी मुसलमान समाज के कई लोगों में आक्रोश है.
सुप्रीम कोर्ट के वकील महमूद प्राचा ने बीबीसी से कहा, “एक प्रकार से वक़्फ़ एक समुदाय की सार्वजनिक ज़मीन है. जिस तरह से सरकारी ज़मीन पर एडवर्स पज़ेशन का क़ानून नहीं चलता, उसी तरह वक़्फ़ संपत्ति के मामले में भी एडवर्स पज़ेशन का क़ानून नहीं चल सकता.”
हालांकि सरकार ने वक़्फ़ को लिमिटेशन एक्ट के दायरे में रखा है, पहले ये लिमिटेशन एक्ट के दायरे से बाहर था.
कलेक्टर राज की वापसी का आरोप

बिल में कहा गया है कि वक़्फ़ के रूप में पहचानी गई कोई भी सरकारी संपत्ति वक़्फ़ नहीं मानी जाएगी. अनिश्चितता की स्थिति में उस क्षेत्र का कलेक्टर स्वामित्व निर्धारित करेगा और राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपेगा. यदि उसे सरकारी संपत्ति माना जाता है, तो वह राजस्व रिकॉर्ड को अपडेट करेगा.
बिल के अमल में आ जाने से ऐसी सरकारी संपत्ति जिस पर वक़्फ़ बोर्ड दावा कर रहा है वो अब कलेक्टर के विवेक पर है कि वो किस तरह फ़ैसला करता है.
लोग आरोप लगा रहे हैं कि प्रस्तावित बिल में कलेक्टर को असीमित अधिकार मिल जाएंगे.
महमूद प्राचा का कहना है कि कलेक्टर ख़ुद एक पार्टी है तो वह तटस्थ कैसे रह सकता है.
किसी भी ज़मीन को वक़्फ़ घोषित करने से पहले सर्वेयर जो एक सरकारी कर्मचारी ही होता है, वह सभी संबंधित विभागों को नोटिस देता है ताकि किसी भी तरह की आपत्ति का संज्ञान ले सके और उनका निवारण हो सके.
जिन विभागों को नोटिस दिया जाता है, उनमें राजस्व, ग्राम समाज ,रेलवे ,डिफेंस नज़ूल सब आते हैं, जिनकी आपत्तियां दर्ज की जातीं हैं.
उसके बाद सर्वेयर की रिपोर्ट वक़्फ़ बोर्ड और शासन को भेज दी जाती है. इस प्रक्रिया के पूरी हो जाने के बाद सरकार अपने गैजेट में एक नोटिफिकेशन जारी करती है.
जमाते इस्लामी हिंद के अध्यक्ष सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने बीबीसी से कहा, "संशोधन अंग्रेज़ों के पुराने क़ानूनों से प्रेरित है, जो कलेक्टर को अंतिम प्राधिकारी के रूप में स्थापित करता है, जिससे मुसलमानों के अपने धार्मिक दान का प्रबंधन करने के अधिकारों का हनन होता है.”
हुसैनी ने कहा कि ये ऐसा है कि एनजीटी से पर्यावरण संबंधी अधिकार या आईटीएटी से टैक्स संबंधी अधिकार वापिस ले लिया जाए.
वक़्फ़ शरियत का एक मौलिक पहलू है. वक़्फ़ की अवधारणा एक दीर्घकालिक धार्मिक एवं धर्मार्थ उपयोग को मान्यता देता है और उसको हटाया जा रहा है. इस परिवर्तन से वक़्फ़ संपत्तियों पर और अधिक विवाद उत्पन्न होने का ख़तरा है .
एकतरफ़ा फ़ैसला लेने का आरोप

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सुप्रीम कोर्ट के वकील फुज़ैल अहमद अय्यूबी जो इस तरह के मामलों में पैरवी कर रहे हैं, उनका कहना है, “बिना मुस्लिम संगठनों से बात किए ही ये बिल तैयार किया गया है. कलेक्टर को सर्वे कमिश्नर बनाना सही नहीं है. यह ब्रिटिश राज से प्रेरित है क्योकि जहाँ सरकार के कब्ज़े में ज़मीन है, वहां कलेक्टर एक पार्टी ख़ुद बन जाता है तो वह कैसे इंसाफ़ करेगा. उसके हाथ तो ख़ुद ही बंधे हुए हैं.”
जमीयत उलेमा हिंद के सदर अरशद मदनी का कहना है कि नया संशोधन पारित हो जाने पर एक कलेक्टर राज अस्तित्व में आएगा और यह फ़ैसला कलेक्टर करेगा कि कौन सी संपत्ति वक़्फ़ है और कौन सी वक़्फ़ नहीं, जिससे वक़्फ़ को नुकसान ज़्यादा होगा
बिल में प्रावधान किया गया है कि बिना वक़्फ़ डीड के वक़्फ़ की संपत्ति को नहीं माना जाएगा. इसका मतलब ये हुआ कि अगर कोई संपत्ति वक़्फ़ डीड के बिना वक़्फ़ की गई है तो उसका मसला पेचीदा बन सकता है.
शिया धर्म गुरु कल्बे जव्वाद ने बीबीसी से कहा, “प्रस्तावित विधेयक से वक़्फ़ को समाप्त करने की साज़िश रची जा रही है. हमें बीजेपी से कोई उम्मीद नहीं है लेकिन हम चाहते हैं कि चन्द्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार इस बिल का विरोध करें क्योकि ये मुसलमानों की दान की हुई ज़मीन का मसला है, जिसमें सरकार की मंशा साफ़ नहीं है.”
कल्बे जव्वाद ने कहा, “60 फ़ीसदी वक़्फ़ की ज़मीन पर सरकार का कब्जा है. सदियों पुरानी नवाब की लिखी वक़्फ़ डीड कैसे ढूंढी जाएगी. इस बिल को पूरी योजना के साथ लाया गया है ताकि वक़्फ़ की ज़मीन को बड़े लोगों को बेचा जा सके या उनको कब्जा दिया जा सके. औक़ाफ़ (वक़्फ़) को ख़त्म करने की मंशा से उसे इस बिल के ज़रिए उलझाया जा रहा है.”
सुप्रीम कोर्ट के वकील फुज़ैल अहमद अय्यूबी कहते हैं , “इस प्रावधान को ख़त्म करने से वक़्फ़ की प्रॉपर्टी पर भूमाफ़िया अपना दावा कर सकते हैं, जिससे और विवाद बढ़ जाएगा. अभी जो मौजूदा स्थिति है, उसके हिसाब से उस पर दावा किया जा सकता है.”
ग़ैर-मुस्लिम को वक़्फ़ बोर्ड का सदस्य बनाना

प्रस्तावित बिल में प्रावधान किया गया है कि ग़ैर मुस्लिम भी वक़्फ़ बोर्ड का सदस्य बन सकता है, जिसको लेकर मुस्लिम धर्म गुरुओं ने आपत्ति दर्ज की है.
शिया धर्मगुरु कल्बे जव्वाद के मुताबिक़, “ये इस तरह हो गया है कि पंडित से निकाह पढ़वाया जाए और मौलवी से फेरे कराए जाएं क्योंकि वक़्फ़ इस्लामिक क़ानून के मुताबिक़ होता है तो इसमें ग़ैर मुस्लिम का क्या काम और ऐसा है तो क्या किसी मंदिर के बोर्ड में मुस्लिम को शामिल किया जा सकता है?”
जव्वाद ने कहा, ''कई मंदिरों में सोने के भंडार हैं. अगर यह सोना रिज़र्व बैंक में चला जाए तो डॉलर क़ीमत रुपए के बराबर हो जाएगी. क्या सरकार इस तरह का काम करेगी?''
वहीं फुज़ैल अहमद अय्यूबी कहते है कि अगर ग़ैर मुस्लिम को वक़्फ़ बोर्ड का सदस्य बनाया जाएगा तो फिर जैन ,सिख ,ईसाई ,हिंदू सभी धर्मों के इस तरह के बोर्ड में कानून बनाने की राह खुल जाएगी, जिसमें उस धर्म के न मानने वाले सदस्य हो सकते हैं.
उत्तर प्रदेश शिया वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन अली जैदी ने बीबीसी से कहा, “अभी यह मामला जेपीसी को गया है. उसकी रिपोर्ट पर रुख़ स्पष्ट किया जाएगा. वहीं फ़िलहाल इस बिल को लेकर एक पैनल विचार विमर्श कर रहा है. बोर्ड अपनी प्रॉपर्टी का सर्वे कर रहा है.”
बहरहाल अभी देश भर में जितने भी वक़्फ़ बोर्ड हैं, उनमें सिर्फ़ उत्तर प्रदेश और बिहार में ही शिया वक़्फ़ बोर्ड हैं.
महिलाओं को शामिल करने वाले प्रावधान का स्वागत

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हलांकि बिल के एक प्रावधान से मुस्लिम जगत के कई विद्वानों को कोई आपत्ति नहीं है. और वो प्रावधान है वक़्फ़ बोर्ड के मुस्लिम सदस्यों में महिला सदस्य को शामिल करना.
जमाते इस्लामी हिंद के सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी के मुताबिक़, “क़ानून में कुछ बदलाव फायदेमंद हो सकते हैं, जैसे महिलाओं को शामिल करना और शिया या अन्य कम प्रतिनिधित्व वाले समुदायों को प्रतिनिधित्व देना. हम इन प्रस्ताव को एक सकारात्मक क़दम के रूप में स्वीकार करते हैं और इसका स्वागत करते हैं.”
हालांकि हुसैनी ने कहा कि वह सरकार को याद दिलाना चाहेंगे कि क़ानून लोगों के कल्याण के लिए बनाए जाने चाहिए और क़ानूनों से प्रभावित होने वालों को सलाह की प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए.
हुसैनी ने कहा, “यदि ज़रूरत पड़ी तो हम सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाएंगे क्योंकि वक़्फ़ अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ हैं. लोगों की संपत्ति की रक्षा करने के बजाय यह बदलाव उनके विनाश का कारण बन सकते हैं. इसलिए इन संशोधनों को रोकना बहुत ज़रूरी है.”
वक़्फ़ के पास संपत्ति और प्रबंधन

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यूपीए सरकार ने 2009 में वामसी पोर्टल बनाया था जो वक़्फ़ संपत्ति के डेटाबेस के तौर पर काम कर रहा है, जिसमें अब तक वक़्फ़ की 872,324 अचल संपत्तियों की पहचान की गई थी और 16713 चल संपत्ति थी, जिसमें 97 फ़ीसदी सिर्फ़ 15 राज्यों में है.
उत्तर प्रदेश में करीब 232,457 संपत्तियां हैं, वहीं ओडिशा में 10314 संपत्तियां वक़्फ़ की हैं.
इस पोर्टल के मुताबिक़, वक़्फ़ वाली कुल संपत्तियों में सिर्फ़ 39 फीसदी संपत्तियां बिना विवाद वाली हैं.
50 फीसदी के बारे में स्पष्टता नहीं है. सात फ़ीसदी अतिक्रमण वाली और तकरीबन दो फ़ीसदी संपत्तियां विवाद वाली हैं.
हाल ही में दिल्ली में तकरीबन 123 वक़्फ़ प्रॉपर्टी को केन्द्र सरकार ने अपने अधीन ले लिया है, जिसको लेकर विवाद जारी है.
इनमें एक मस्जिद भी है, जिसका मामला दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहा है.
बिल के समर्थक क्या कहते हैं?

बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी का कहना है कि, “वक़्फ़ बोर्ड की ज़मीन का अभी तक दुरुपयोग होता आया है. ज़्यादातर ज़मीनें बेच दी गईं हैं और जो बची हैं, उनका पता नहीं है. वक़्फ़ की जितनी प्रॉपर्टी है, उसके हिसाब से 3500 करोड़ रु. की सालाना आमदनी होनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है. अब जब सरकार इसको सही करना चाहती है, तब कांग्रेस के लोग इसका विरोध वोटबैंक के अपने ठेकेदारों को बचाने के लिए कर रहे हैं.”
इस बिल के समर्थक ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ़्ती शहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी ने कहा, “केंद्र सरकार वक़्फ़ बोर्ड को लेकर एक बिल संसद में लाई है. इस बिल के माध्यम से केंद्र सरकार वक़्फ़ बोर्ड की संपत्ति के मामले में होने वाली मनमानी को रोकेगी. इससे भू माफ़ियाओं के मिलीभगत से होनेवाली वक़्फ़ की सम्पत्ति को बेचने या लीज पर देने के कारोबार पर लगाम लगेगी.”
रज़वी ने कहा कि भारत के तमाम वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष, अधिकारी, सदस्य भू माफिया के साथ मिलकर वक़्फ़ की संपत्ति का मनमाने तरीक़े से इस्तेमाल कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, “अगर वक़्फ़ बोर्ड सही मायने में अपना काम करते तब पूरे देश के मुसलमानों में विकास साफ तौर पर दिखाई देता. बुज़ुर्गो ने अपनी संपत्तियां इसलिए वक़्फ़ कर दी थी कि इसकी आमदनी से मुसलमानों के ग़रीब और कमज़ोर बच्चों और बच्चियों की तालीम का अच्छा इंतजाम किया जा सकेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ.”
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